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बुद्धि निर्माण का समालोचनात्मक विचार
आमतौर पर बुद्धि का प्रयोग प्रज्ञा, प्रतिभा, ज्ञान एवं समझ इत्यादि जैसे अर्थों में किया जाता है। यह वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
आमतौर पर बुद्धि का प्रयोग प्रज्ञा, प्रतिभा, ज्ञान एवं समझ इत्यादि जैसे अर्थों में किया जाता है। यह वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
बुद्धि की परिभाषा को उसके लक्षणों के आधार पर मुख्यतः पांच वर्गों में बांटा गया है -
- सीखने की योग्यता
- समन्वय की योग्यता
- समस्या समाधान की योग्यता
- अमूर्त चिंतन की योग्यता
- समायोजन की योग्यता
मानसिक आयु
मानसिक आयु व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता की ओर संकेत करती है। एक व्यक्ति की मानसिक आयु जितनी अधिक होती है तो यह माना जाता है की उसकी विभिन्न मानसिक योग्यताओं का विकास उतना अधिक हुआ है अथवा परिपक्व है।
उदाहरणार्थ - यदि 7 वर्ष का बच्चा 12 वर्ष के बच्चे के लिए निर्मित बुद्धि परीक्षण उतनी ही कुशलता से करता है जितना 12 वर्ष का बच्चा करता है तो 7 वर्ष के बच्चे मानसिक आयु 12 वर्ष होगी और यदि 12 वर्ष का बच्चा 7 वर्ष के बच्चे के लिए निर्धारित परीक्षण को कर पाता है परन्तु 12 वर्ष के बच्चों के लिए निर्धारित परीक्षण को नहीं कर पाता तो उसकी आयु 7 वर्ष होगी।
इस प्रकार मानसिक आयु व्यक्ति के द्वारा प्राप्त विकास की सीमा की वह अभिव्यक्ति है जो एक आयु-विशेष में प्रत्याशित उसके कार्य-निष्पादन के रूप में किया जाता है।
बुद्धि-लब्धि
बुद्धि-लब्धि से बालक या व्यक्ति की सामान्य योग्यता के विकास की गति मालूम पड़ती है।
कोल एवं ब्रूस के अनुसार :- बुद्धि-लब्धि से यह ज्ञात होता है कि बालक या व्यक्ति की सामान्य योग्यता के विकास की गति कैसी है।
मानसिक आयु ज्ञात करने के विचार का प्रतिपादन का श्रेय बिने को है। टर्मन ने बिने के विचार को स्वीकार कर परीक्षण किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मानसिक आयु बालक के मानसिक विकास की बुद्धि के बारे में नहीं बता सकती।
इस गति को मालूम करने के लिए टर्मन ने बुद्धि-लब्धि निकलने का सूत्र दिया :
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु /वास्तविक आयु * 100
उदाहरण यदि बालक की मानसिक आयु 20 वर्ष तथा वास्तविक आयु 16 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि होगी, जैसे
बुद्धि-लब्धि = 20/16 *100 = 125
चिंतन/विचार
चिंतन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है जो किसी समस्या के कारण आरंभ होती है और उसके अंत तक चलती रहती है।
प्रसिद्ध विद्वान रॉस के अनुसार :- चिंतन, मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है या मन की बातों से संबंधित मानसिक क्रिया है।
चिंतन के प्रकार :-
- कल्पनात्मक चिंतन : इस चिंतन का संबंध पूर्व-अनुभवों पर आधारित भविष्य से होता है।
- तार्किक चिंतन : अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डिवी ने तार्किक चिंतन को विचारात्मक चिंतन की संज्ञा दी है।
- परत्यात्मक चिंतन : इस चिंतन का संबंध पूर्व-निर्मित प्रत्ययों से होता है, जिनकी सहायता से भविष्य के किसी निश्चय पर पहुंचा जाता है।
- प्रत्यक्षात्मक चिंतन : यह निम्न स्तरीय चिंतन है। यह विशेष रूप से पशुओं और बालकों में पाया जाता है।