सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन
ब्रह्म समाज
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय द्वारा 20 अगस्त, 1828 को कलकत्ता में की गई, जिसका उद्देश्य तत्कालीन हिन्दू समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना था।
1809 ई. में राममोहन राय की फ़ारसी भाषा की पुस्तक तुहफ़तुल-उल-मुवाहिदीन का प्रकाशन हुआ।
राजा राममोहन राय ने 1814 ई. में आत्मीय सभा की स्थापना की तथा 1817 ई. में डेविड हेयर की सहायता हिन्दू कालेज की स्थापना की।
राजा राममोहन राय ने 1820 ई. में प्रीसेप्टस ऑफ़ जीसस की रचना की। इन्होंने संवाद कौमुदी का भी सम्पादन किया।
इन्होने सती प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया तथा पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1825 ई.में वेदांत कॉलेज की स्थापना की।
1833 ई. में लंदन में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई। सुभाष चंद्र बोस ने राजा राममोहन राय को युगदूत की उपाधि से सम्मानित किया था।
आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापन स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा 1875 ई. में बंबई में की गई। स्वामी दयानन्द सरस्वती को बचपन में मूलशंकर के नाम से जाना जाता था। इनके गुरु स्वामी विरजानन्द थे।
आर्य समाज का प्रमुख उद्देश्य वैदिक धर्म को पुनः शुद्ध रूप से पुनः स्थापित करने का प्रयास, भारत को धार्मिक सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न तथा पाश्चात्य प्रभाव को समाप्त करना था।
इन्होंने बाल विवाह, पुरोहित व्यवस्था, विधवा व्यवस्था, सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का विरोध किया।
वेदों की ओर लौटो का नौरा दिया।
1883 ई. में अजमेर में इनकी मृत्यु हो गई।
रामकृष्ण मिशन
दक्षिणेश्वर के स्वामी कहे जाने वाले रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य स्वामी विवेक नन्द थे।
1893 ई. में स्वामी विवेकनन्द ने शिकागो में हुई धर्म संसद में भाग लेकर पाश्चात्य जगत को भारतीय संस्कृति व दर्शन से अवगत कराया था।
स्वामी जी की भाषण के बारे में न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा की उनको सुनने के बाद यह अनुभव करते हैं कि ऐसे ज्ञान सम्पन्न देश में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है। विवेकानन्द ने 1896 ई. में न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की।
1897 ई. में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन का कलकत्ता के वेल्लूर और अल्मोड़ा के मायावती नामक स्थानों पर मुख्यालय खोला गया। 1900 ई. में आयोजित विश्व के धर्मों के इतिहास पर चर्चा हेतु पेरिस गए थे।
प्राथना समाज
आत्माराम पांडुरंग ने ई. में प्रार्थना समाज की स्थापना की। इसकी स्थापना के प्रेरणा स्रोत केशवचन्द्र सेन थे।
महादेव गोविन्द रानाडे और आर जी भण्डारकर भी बाद में इसमें शामिल हुए। प्रार्थना समाज की स्थापना का उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि विधवा विवाह, स्त्री-शिक्षा आदि को प्रोत्साहन देना था।
अलीगढ़ आंदोलन
सर सैयद अहमद खां, नजर अहमद, मोहसिन उल मुल्क और चिराग अली इससे जुड़े हुए थे। सर सैयद अहमद ने 1863 ई. में मोहम्मडन लिटरेरी सोसायटी की स्थापना की।
अलीगढ़ आंदोलन, सर सैयद अहमद खां द्वारा अलीगढ़ में चलाया गया। उन्होंने 1875 ई. में अलीगढ़ में आंग्ल-मुस्लिम स्कूल की स्थापना की। 1920 ई. तक यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में सामने आया।
खेड़ा सत्याग्रह (1918 ई.)
गांधीजी ने किसानों की समस्याओं को लेकर ई. में खेड़ा में किसान सत्याग्रह की शुरुआत की। गाँधी के अन्य सहयोगियों में सरदार वल्ल्भ भाई, इन्दुलाल याज्ञनिक थे।
अहमदाबाद सत्याग्रह (1918 ई.) मिल-मजदूरों और मिल-मालिकों के बीच प्लेग बोनस को लेकर विवाद आरम्भ हुआ था।
इसी आंदोलन में सर्वप्रथम गांधीजी भूख हड़ताल पर बैठे थे। अनुसुइया बेन पटेल, गांधीजी की सहायक थी।
रौलेट एक्ट (1919 ई.)
1919 ई.में ब्रिटिश सरकार ने रैलेट एक्ट पारित किया, जिसमें प्रावधान था कि बिना किसी प्रमाण के संदिग्ध के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती थी। इसे आतंकवादी अपराध अधिनियम भी कहा गया। भारतीय नेताओं ने इसे काला कानून माना।
6 अप्रैल, 1919 को रौलेट एक्ट के विरोध में देश भर में हड़ताल की गई।
गांधीजी ने इस कानून के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस में पारित करवाया।
खिलाफत आंदोलन (1920 ई.)
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वर्साय की संधि के प्रावधानों के अनुसार तुर्की में खलीफा के पद को समाप्त कर दिया गया। जिसके कारण खिलाफत आंदोलन भड़का।
17 अक्टूबर 1919 को अखिल भारतीय स्तर पर खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। 1919 ई. में मोहम्मद अली तथा शौकत अली ने अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया।
अबुल कलाम आजाद ने अपनी पत्रिका अल-हिलाल एवं कामरेड के माध्यम से खिलाफत आंदोलन का प्रचार किया।
1919 ई. में दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी के अधिवेशन में गांधीजी ने भाग लिया और अध्यक्ष बने।
जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड(1919 ई.)
रौलेट एक्ट के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान पंजाब के लोकप्रिय नेता सैफुद्दीन किचलू तथा सत्यपाल को गिरफ्तार किया गया था।
इस गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में एक जनसभा आयोजित की गई, जिस पर जनरल आर. डायर ने गोलियां चलवाई। इसमें सैड़कों लोग मारे गए।
वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकर नायर ने इस हत्या काण्ड के विरोध में इस्तीफा दे दिया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नाइट की उपाधि वापस कर दी।
दीनबंधु सी एक एक एंडूज ने इस हत्याकांड को जानबूझ कर की गई हत्या की संज्ञा दी।
इस हत्यकांड की जाँच हेतु सरकार ने हण्टर समिति नियुक्ति की, जिसके सदस्य थे-लॉर्ड हण्टर, मिस्टर जस्टिस रैस्किन मि. राईस, सर जार्ज बैरो, सर टॉमस स्मिथ, सर चिमन शीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद तथा जगतनारायण।
पूना पैक्ट
महात्मा गाँधी ने दलितों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान करने वाले कम्युनल अवार्ड का विरोध करने के लिए 20 सितंबर 1932 को यरवदा जेल में आमरण अनशन आरम्भ किया।
मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से 26 सितंबर 1932 को बी आर अम्बेडकर तथा गांधीजी के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें दलितों के लिए 71 स्थान की जगह सुरक्षित स्थानों की संख्या 148 करने तथा संयुक्त निर्वाचक मंडल स्वीकार करने की बात कही गई। इसे पूना पैक्ट कहा गया।
केंद्रीय विधानमंडल में 18% सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित हो गई।
भारत छोडो आंदोलन (1942 ई.)
अगस्त प्रस्ताव तथा क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया गया। 8 अगस्त 1942 ई.को बंबई के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया।
8 अगस्त 1942 ई.को गांधीजी ने करो या मरो का नारा दिया। कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरप्तार किए गए। गांधीजी को पूना के आगा खां महल में रखा गया। मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ों आंदोलन का समर्थन नहीं किया तथा तटस्थता बनाए रखी।
साइमन कमीशन (1927-28 ई.)
8 नवंबर, 1927 को साइमन कमीशन का गठन किया गया। इस कमीशन के सभी सदस्य ब्रिटिश थे।
इस आयोग का कार्य के अधिनियम के व्यावहारिक सफलता का पता लगाना था। किसी भारतीय को शामिल नहीं करने के कारण भारत में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ।
3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन के बम्बई पहुंचने पर हड़ताल आयोजित की गई। लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय घायल हुए, जिनकी बाद में 1928 ई. मृत्यु हो गई। इस पुलिस कार्यवाही का नेतृत्व साण्डर्स कर रहा था।